Tuesday, January 11, 2011

भारतीय गौ विज्ञान परीक्षा 15/10/2012 को

देशी गौवंश के आर्थिक, सामाजिक, धर्मिक, सांस्कृतिक, पौराणिक, वैज्ञानिक महत्व की जानकारी कराने के उद्धेश्य से गौरक्षार्थ आयोजित होने वाली ‘भारतीय गौविज्ञान परीक्षा’ हेतू पंजीकरण कराने की अन्तिम तिथि 30/09/2012 है। पंजीकरण हेतू निकट की स्कूलों में प्रधानाचार्य से सम्पर्क करें।

इस परीक्षा में कक्षा 6 से उपर के सभी छात्रा, महिला-पुरूष, आम व्यक्ति भाग ले सकते है। परीक्षा आयोजन के ईच्छुक गौभक्त शिक्षक, स्कूल संचालक और कार्यकर्ता अधिक जानकारी के लिए मो.- 094140.13214 पर या निम्न पते पर सम्पर्क करें। 

सुरेश कुमार सेन, राष्ट्रीय संयोजक
बी-324, सुभाषनगर, भीलवाड़ा ;राज.- 311001
मो.-094140.13214

Sunday, December 5, 2010

संसार में अतुलनीय हैं गौमाता

सारे भारत में कहीं भी चले जाइए और सारे तीर्थ स्थानों के देवस्थान देख आइए। आपको किसी मंदिर में केवल श्री विष्णु भगवान मिलेंगे, किसी मंदिर में श्री लक्ष्मी नारायण दो मिलेंगे। किसी में सीता राम लक्ष्मण तीन मिलेंगे तो किसी मंदिर में श्री शंकर पार्वती, गणेश, कार्तिकेय, भैरव, हनुमान जी इस प्रकार छः देवी-देवता मिलेंगे। अधिक से अधिक किसी में दस-बीस देवी-देवता मिल जाएँगे, पर सारे भूमंडल में ढूँढ़ने पर भी ऐसा कोई देवस्थान या तीर्थ नहीं मिलेगा जिसमें हजारों देवता एक साथ हों।
ऐसा दिव्य स्थान, ऐसा दिव्य मंदिर, दिव्य तीर्थ देखना हो तो बस, वह आपको गोमाता से बढ़कर सनातनधर्मी हिंदुओं के लिए न कोई देव स्थान है, न कोई जप-तप है, न ही कोई सुगम कल्याणकारी मार्ग है। न कोई योग-यज्ञ है और न कोई मोक्ष का साधन ही। 'गावो विश्वस्य मातरः' देव जिसे विश्व की माता बताते हों उस गौमाता की तुलना भला किससे और कैसे की जा सकती है?
जिस प्रकार तीर्थों में तीर्थराज प्रयाग हैं उसी प्रकार देवी-देवताओं में अग्रणी गोमाता को बताया गया है। 'ब्रह्मावैवर्तपुराण' में कहा गया है-
गवामधिष्ठात्री देवी गवामाद्या गवां प्रसूः।
गवां प्रधाना सुरभिर्गोलोके सा समुद्भवा।
अर्थात्‌ गौओं की अधिष्ठात्री देवी, आदि जननी, सर्व प्रधाना सुरभि है। समुद्र मंथन के समय लक्ष्मी जी के साथ सुरभि (गाय) भी प्रकट हुई थी। ऋग्वेद में लिखा है-
'गौ मे माता ऋषभः पिता में
दिवं शर्म जगती मे प्रतिष्ठा।' 
गाय मेरी माता और ऋषभ पिता हैं। वे इहलोक और परलोक में सुख, मंगल तथा प्रतिष्ठा प्रदान करें।
हमारे धर्मशास्त्रों के अनुसार भगवान का अवतार ही गौमाता, संतों तथा धर्म की रक्षा के लिए होता है। 
गोस्वामी तुलसीदास जी रामचरितमानस में लिखते हैं-

'विप्र धेनु सुर संत हित लीन्ह मनुज अवतार।
निज इच्छा निर्मित तनु माया गुन गोपार।' 

गौमाता में हैं समस्त तीर्थ

गाय, गोपाल, गीता, गायत्री तथा गंगा धर्मप्राण भारत के प्राण हैं, आधार हैं। इनमें मैं गौमाता को सर्वोपरि महत्व है। पूजनीय गौमाता हमारी ऐसी माँ है जिसकी बराबरी न कोई देवी-देवता कर सकता है और न कोई तीर्थ। गौमाता के दर्शन मात्र से ऐसा पुण्य प्राप्त होता है जो बड़े-बड़े यज्ञ दान आदि कर्मों से भी नहीं प्राप्त हो सकता। 

जिस गौमाता को स्वयं भगवान कृष्ण नंगे पाँव जंगल-जंगल चराते फिरे हों और जिन्होंने अपना नाम ही गोपाल रख लिया हो, उसकी रक्षा के लिए उन्होंने गोकुल में अवतार लिया। शास्त्रों में कहा है सब योनियों में मनुष्य योनी श्रेष्ठ है। यह इसलिए कहा है कि वह गौमाता की निर्मल छाया में अपने जीवन को धन्य कर सकते हैं। गौमाता के रोम-रोम में देवी-देवताओं का एवं समस्त तीर्थों का वास है। 

गोमाता को एक ग्रास खिला दीजिए तो वह सभी देवी-देवताओं को पहुँच जाएगा। इसीलिए धर्मग्रंथ बताते हैं समस्त देवी-देवताओं एवं पितरों को एक साथ प्रसन्न करना हो तो गोभक्ति-गोसेवा से बढ़कर कोई अनुष्ठान नहीं है। 

भविष्य पुराण में लिखा है गोमाता कि पृष्ठदेश में ब्रह्म का वास है, गले में विष्णु का, मुख में रुद्र का, मध्य में समस्त देवताओं और रोमकूपों में महर्षिगण, पूँछ में अन्नत नाग, खूरों में समस्त पर्वत, गौमूत्र में गंगादि नदियाँ, गौमय में लक्ष्मी और नेत्रों में सूर्य-चन्द्र हैं। 

भगवान भी जब अवतार लेते हैं तो कहते हैं- 
'विप्र धेनु सुर संत हित लीन्ह मनुज अवतार।'

Saturday, November 13, 2010

विद्यार्थियों और आम लोगों को गौ-विज्ञान के बारे में जानकारी होना आज की आवश्यकता

देश के शिक्षा पाठ्यक्रमों में ‘आदर्श भारतीय गौविज्ञान’ का कोर्स लागू हो- 
सुरेश कुमार सेन ;भीलवाड़ा

भारतवर्ष पर गुलामी के काल खण्ड में आक्रान्ताओं ने कई सांस्कृतिक मानबिन्दुओं पर सुनियोजित आक्रमण किये। जिसमें शिक्षा का क्षैत्र सर्वाधिक प्रभावित हुआ। एक समय तो ऐसा भी रहा था जब विदेशों से विद्यार्थी भारत आकर अध्ययन किया करते थे। श्रेष्ठ शिक्षा के कारण सैकड़ों आक्रमण होने के बाद भी हमारे देश को कोई मिटा नहीं पाया। परन्तु बड़ी विडम्बना है कि स्वतन्त्राता के 63 वर्षो के बाद भी हमारे शिक्षा पाठ्यक्रमों में भारतीय संस्कृति की आधार गौमाता के वैज्ञानिक, धर्मिक, सामाजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक महत्व के बारे में कोई जानकारी नहीं है। जहा तक मेरी जानकारी है, वर्तमान में सम्पूर्ण भारत वर्ष में कहीं पर भी किसी भी राज्य में कक्षा एक से लेकर बी.ए., बी.काम तक गौमाता के बारे में कोई पाठ या कोर्स नहीं है। हमने ग्रंथों में ऐसा पढ़ा है कि गाय के गोबर में लक्ष्मी का वास होता है परन्तु उसी लक्ष्मी के लिए हमें सहयोग मांगना/लेना पड़ता है। गौशालाए खोलनी पड़ती है। गौशालाओं के लिए दान, चंदा एकत्रा करना पड़ता है। 

स्वतंत्रता के पहले से आज तक गोहत्याबंदी के लिए कई आंदोलन चल रहै है। कई कत्लखानों के सामने आज भी अखण्ड धरने  जारी है। कई संत गोहत्याबदी में ही लगे हुए है। फिर  भी अपने देश में सरकारी अनुदान और सहयोग पर हजारों की तादाद में कत्लखाने धड़ल्ले  से  चल रहै है, जिनमें हजारों की संख्या में प्रतिदिन गोहत्याएं हो रही है। ऐसा क्यों ? इस पर विचार करने पर ध्यान में आता है कि हमें गाय के आर्थिक और वैज्ञानिक पक्ष की जानकारी से दूर कर दिया गया हैं। हमें इसके नकारात्मक गुण बता कर विदेशी नस्ल की गायों और भैंसो को अध्कि महत्वपूर्ण बताया गया है। जिस कारण हम देशी गाय से दूर होते चले गये। यदि हमें गाय के आर्थिक और वैज्ञानिक पक्ष की सही सही जानकारी होती तो सर्वगुण सम्पन्न गौमाता के बारे में ये प्रयास नहीं करने पड़ते। 

इतना होते हुए भी वर्तमान में देशी गाय के प्रति आम व्यक्तियों का चिंतन बदल रहा है। देशी गाय के दूध्, दही, घी, गोबर व गौमूत्र का प्रयोग कई प्रकार की असाध्य बिमारियों में लाभदायक सिद्ध हो चुका है। गाय का पालन करके मनुष्य सभी मनौकामनाओं की पूर्ति कर सकता है। गोसेवा से भी मनवान्छित पफल पाये जा सकते है। हमारे समाज में आज भी गाय के प्रति धर्मिक भावनाएं बहुत अच्छी है। ग्यारस/अमावस के दिन गायों का चारा देना, भोजन से पहले गाय के लिए गौग्रास निकालना, गौशालाओं के लिए आर्थिक सहयोग करना आदि अनेक उदाहरणों के चलते गाय के प्रति धार्मिक भावनाएं बनी हुई है। 

कुत्ते को लावारिस क्यों नहीं छोड़ा जाता - कोई भी व्यक्ति अकाल में अपनी भैंस को लावारिस नहीं छोड़ता है। भैड़, बकरी और अपने कुत्ते तक को लावारिस नहीं छोड़ते है परन्तु सर्वगुण सम्पन्न गौमाता को अकाल में सबसे पहले लावारिस छोड़ दिया जाता है। पाश्चात्य शिक्षा का यह सबसे बड़ा घृणित नमूना है। देशी गोवंश के बजाय जर्सी या हालीस्टन गाय रखना, देशी गाय के बजाय भैंस को पालना, कृषि कार्य में बैलों के बजाय ट्रेक्टरों का उपयोग लेना, खेती में गोबर के बजाय राशायनिक खादों का प्रयोग करना, स्वदेशी के बजाय विदेशी वस्तुओं का प्रयोग करना आदि हम अपने दैनिक जीवन में हजारों उदाहरण अपने सामने घटित होते देख सकते है। जब हम इस विषय पर विचार करते है तो हमें लगता है कि हम गौमाता से दूर होते चले गये है। हमें इस प्रकार मजबूर कर दिया गया कि हम स्वतः देशी गाय का चिंतन छोड़ने लग गये। 

कटु सत्य - एक बात तो सत्य है कि जब तक हम गौमाता के बारे में पढ़ेगें या जानेगें नहीं तब तक हम गोमाता को पालने या रक्षा करने के बारे में भी नहीं सोचेगें। मैं जब तक देशी गाय के महत्व के बारे कुछ भी नहीं जानता था तब तक देशी गाय के बजाय जर्सी या हालीस्टन गाय रखने के लिए ही खूब भाषण दिया करता था। परन्तु जबसे मैंने गौमाता के महत्व को समझा उसके बाद कभी भी गलती से भी विदेशी नस्ल को अपनाने के लिए नहीं कहा। गौपालन बहुत सरल है। केवल मानसिकता गौपालन की होनी चाहिए। आज शहर में रहते हुए भी मैनें गाय पाल रखी है। मेरा पूरा परिवार गोभक्त हो गया है। गाय हमारे परिवार की एक सदस्य है। चारे पानी के अलावा गाय को भी वे सब चीजें दी जाती है जो हम काम में लेते हैं। जैसे चाय के समय चाय, खाने के समय रोटी, सुबह सुबह गुड़ रोटी, पानी में प्रतिदिन नमक का प्रयोग आदि । ये सब गाय का महत्व जानने के बाद ही संभव हो सका। 

गौविज्ञान परीक्षा का अभिनव प्रयोग- परिपक्व लोगों को गोमाता के बारे में समझाना थोड़ा कठिन है। क्योंकि बड़े लोग उसी बात को समझेगें जिसे वे समझना चाहते है या यू कहें - उन्हैं अपना स्वार्थ जिसमें लगता है उस बात को ही वे समझना चाहते है। यदि गौमाता की बात बच्चो को समझाई जावे तो निश्चित ही आज नही तो कल लाभ अवश्य होगा। सो वर्ष 2008 में मैंने एक विशेष प्रयोग किया। गौमाता की रक्षार्थ एक सकारात्मक पहल प्रांरभ की और स्कूली छात्रों को गौमाता के कुछ अच्छे गुणों का संकलन कर विद्यार्थियों को उपलब्ध् कराये। आकर्षक नकद पुरस्कारों के कारण मैंने पाया कि विद्यार्थी इस परीक्षा में अत्यध्कि उत्साह से भाग ले रहै थे। शिक्षक/अध्यापक तो मानों इस परीक्षा का इंतजार ही कर रहै थै। हमारा प्रयास यह है कि बच्चों को यदि सर्वगुण सम्पन्न देशी गाय के बारे में श्रेष्ठ जानकारी मिलेगी तो भविष्य में देशी गौवंश को बचाने में सफलता  जरूर मिलेगी। अपने जीवन में छात्र जहा भी होगा वह गोमाता की चिंता जरूर करेगा। इसलिए स्कूलों के माध्यम से छात्रों को देशी गौवंश एंव गौउत्पादों की आर्थिक और वैज्ञानिक दृष्टि से उपयोगिता तथा गौमाता के धर्मिक, सांस्कृतिक, ऐतिहासिक महत्व की जानकारी कराने हेतु ये परीक्षाएं आयोजित की जा रही है। 

गौविज्ञान परीक्षाएं क्यों ? वर्तमान शिक्षा पाठ्यक्रमों में भी विद्यार्थियों को देशी गाय के बारे में कहीं पर भी ठीक प्रकार से जानकारी नहीं दी जा रही है। गाय का दूध  पीला क्यों होता है, गाय का घी पीला क्यों होता है, दस ग्राम गाय के घी से हवन करने पर कितनी आक्सीजन बनती है, इसका वैज्ञानिक कारण क्या है ? आदि सामान्य बातें भी बच्चे, आप और हम नहीं जानते है। 

परीक्षा से परिणाम-कोरे कागज की भाति स्वच्छ बाल मन वाले बच्चों को यदि देशी गोवंश के बारे में ठीक प्रकार की नई नई वैज्ञानिक जानकारी मिलेगी तो भविष्य में बच्चे बड़े होकर गौमाता की सुरक्षा के बारे में अवश्य विचार करेगें। हम इस परीक्षा के माध्यम से छात्रों और उनके परिवार जनों को गौमाता के बारे में कई प्रकार की नई नई जानकारी कराने में सफल  होगें। शिक्षा पाठ्यक्रमों में भी ‘आदर्श भारतीय गौविज्ञान’ का विषय सामिल कराने के प्रयास होगे। 

सफल  प्रयोग - राजस्थान में यह परीक्षा पहली बार भीलवाड़ा में दिनांक 14 नवम्बर 2008 को आयोजित हुई जिसमे लगभग 12,500 विद्यार्थियों ने भाग लिया। दूसरे गत वर्ष दिनांक 2 अक्टूबर 2009 को राजस्थान के 20 जिलों के 64,500 विद्यार्थियों ने भाग लिया। इस वर्ष 2010 में इस परीक्षा को अखिल भारतीय स्तर पर आयोजित किया जा रहा है। इस परीक्षा की पुस्तक के माध्यम से कई शिक्षकों को भी गौमाता के बारे में पहली बार नई नई जानकारिया मिली। परीक्षा के कारण कई लोगों ने गाय को बेचने का मन बदल कर घर में गाय को पालने का मन बना लिया। 

परीक्षा कैसे - इस वर्ष भारतीय गौविज्ञान परीक्षा दि. 22.10.2010 महर्षि वाल्मिकी जयन्ति के दिन अखिल भारतीय स्तर पर आयोजित होगी। इस परीक्षा की पुस्तक को कक्षा 6 से 12 वी. तक के विद्यार्थी सरलता से पढ़ सकते है। इस पुस्तक को पढ़ने के बाद विधार्थियों से एक परीक्षा ली जाती है। इन पुस्तकों को स्कूलों में सशुल्क वितरण किया जाता है। स्कूलों के प्रधानाचार्य  और शिक्षक इस कार्य में बहुत रूचि लेते है। पुस्तकें वितरण के कुछ समय बाद प्रश्नपत्र दिये जाएगें और बाद में निधरित तिथि को यह परीक्षा होगी। परीक्षा सम्पन्न होने के बाद स्कूलों से प्रश्नपत्रों को वापस एकत्र कर मुख्यालय भिजवा दिये जाते है। प्राप्त प्रश्नपत्रों के परिणाम अनुसार छात्रों को स्कूल प्रांत स्तर पर/ जिला स्तर पर/ तहसील स्तर पर प्रथम/द्वितीय/तृतीय स्थान प्राप्त करने वाले विद्यार्थियों और परीक्षा में सहयोग करने वाले शिक्षकों को अभिनंदनपत्र प्रदान कर सम्मानित किया जाता है। 

परीक्षा शुल्क- इस परीक्षा का शुल्क 20 रू. ;सहयोग राशि रखा है। जिसमें परीक्षा आवेदन फार्म, परीक्षा पुस्तक, प्रश्नपत्र, प्रमाणपत्र और नकद पुरस्कार व अन्य कई प्रकार के पुरस्कार प्रदान किये जाते है। इस परीक्षा आयोजन में किसी भी प्रकार के राजनैतिक/ सामाजिक/ आर्थिक लाभ की लेश मात्र भी कामना नहीं है। सभी कार्य लागत मूल्य पर ही किये जाते है। 

पुरस्कारों की जानकारी- प्रांत व जिला स्तर पर सर्वाधिक अंक प्राप्त करने वाले विद्यार्थियों को कई नकद व अन्य पुरस्कार प्रदान किये जाते है। विद्यालय स्तर पर सर्वाधिक अंक प्राप्त करने वाले प्रथम, द्वितीय, तृतीय परीक्षार्थीयों को पुरस्कार और प्रमाणपत्र तथा परीक्षा में भाग लेने वाले सभी परीक्षार्थियों को आकर्षक प्रमाण पत्र दिये जाते है। परीक्षा में सहयोग करने वाले संस्था प्रधानो  एंव परीक्षा प्रभारियों को आकर्षक प्रोत्साहन एंव अभिनंदन पत्र प्रदान किये जाते है। 

परीक्षा कब तक - देश के शिक्षा पाठ्यक्रमों में ‘आदर्श भारतीय गौविज्ञान’ का कोर्स लागू होने तक भारतीय गौविज्ञान परीक्षाएं आयोजित कराई जाएगी। 

विनम्र अनुरोध - हर गोभक्त कार्यकर्ता को प्रयास करके इस गौविज्ञान परीक्षा रूपी महायज्ञ में अपनी आहूति अवश्य देनी चाहिए। अपने आस पास की 100-150 स्कूलों में इस परीक्षा को आयोजित कराने का प्रयास करना चाहिए। जो व्यक्ति निजी विद्यालय संचालित करते है या शिक्षक है वे इस परीक्षा को प्रयासपूर्वक अवश्य आयोजित करावें। योजनापूर्वक कार्य करने पर हजारों छात्रों को सरलता से परीक्षा दिलाई जा सकती है। 

परीक्षा सम्बन्धी अधिक जानकारी के लिए 094140.13214 पर सम्पर्क किया जा सकता है। 
प्रेषक- सुरेश कुमार सेन 
राष्ट्रीय परीक्षा संयोजक 
बी-324, सुभाषनगर, भीलवाड़ा ;राज.
311001, मो.-94140.13214 

‘गावो विश्वस्य मातरः’ पाक्षिक पत्रिका...

‘गावो विश्वस्य मातरः’ पाक्षिक पत्रिका....
गौमाता के धर्मिक, आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक, वैज्ञानिक महत्व की जानकारी आम लोगों को कराने के पवित्र उद्देश्य ‘गावो विश्वस्य मातरः’ पाक्षिक समाचार पत्र का प्रकाशन भीलवाड़ा से किया जा रहा है। 

इस पत्रिका में सदैव नये नये प्रयोग, अनुसन्धान, अनुभव तथा नवीनतम दुर्लभ जानकारियों का समावेश होता है जो अत्यन्त उपयोगी और लाभदायक होती है। गौविज्ञान, गौउत्पाद जैसे गाय के दूध्, दही, घी, गोबर और गौमूत्र की उपयोगिता, इसके प्रयोग के तरीके सहित सैकड़ों जानकारियां आप इस पत्रिका के माध्यम से जान सकते है। इस पत्रिका के प्रकाशन का कार्य पूर्ण रूप से अव्यवसायिक है। इष्ट मित्रों सहित इसकी सदस्यता के लिए आपसे अनुरोध् है। 

इसका स्थायी सदस्यता शुल्क- 1500 रू. एंव वार्षिक शुल्क- 200 रू. ‘भारतीय गौविज्ञान शौध् संस्थान, भीलवाड़ा’ के नाम डी.डी./मनीआर्डर/एस बी आई के बैंक खाते नं. 31162135524 से सीधे जमा करा कर सूचना निम्न पत्ते पर भिजावें।

सम्पादक ‘गावो विश्वस्य मातरः’
बी-324, सुभाषनगर, भीलवाड़ा (राज.)
311001, मो. 94140-13214 

भारतीय गौविज्ञान परीक्षा

गौसम्पदा के विशेषांक प्रकाशन पर हार्दिक शुभकामनांए


अखिल भारतीय स्तर पर सरकारी/ गैरसरकारी स्कूलों के माध्यम से विद्यार्थियों को देशी गौवंश की आर्थिक और वैज्ञानिक दृष्टि से उपयोगिता की जानकारी कराने हेतु प्रयासरत अव्यवसायिक संस्थान।  कार्यकर्ताओं को परीक्षा सामग्री बिना लाभ पर उपलब्ध् कराई जाती है। 

अधिक जानकारी के लिए मो. 94140-13214 सम्पर्क करें।
सुरेश कुमार सेन 
राष्ट्रीय संयोजक, भारतीय गौविज्ञान परीक्षा 
कार्यालय- बीः324, ‘अभयधाम’ सुभाषनगर भीलवाड़ा 
राज.( ३११००१) मोबाइल-94140-13214

Saturday, August 21, 2010

आनन्दवन पथमेडा मॅ गौ वत्स पाठ्शाला का आयोजन

युवाऑ के सर्वांगिण विकास और उनमॅ आध्यात्मिकता और गौसेवा के भाव विकसित करने के लिये श्री गोधाम महातीर्थ आनन्दवन पथमेडा मॅ हो रहा हैं गौ वत्स पाठ्शाला का आयोजन 

विश्व मॅ पहली बार नवाचार करके युवाऑ को भारतीय संस्कृति एवम उसमे गौमाता के महत्व और उपादेयता और आवश्यकता के बारे मॅ जानकारी देने के साथ साथ उनका संस्कारयुक्त सर्वांगिण विकास करने के उद्देश्य से दिनाक 17 से 21 जून 2010 तक परम भागवत गौऋषि पूज्य स्वामी श्रीदतशरणानन्द्जी महाराज की पावन प्रेरणा एवम परम पूज्य मलूक पीठाधीश्वर द्वाराचार्य श्री राजेन्द्रदास जी महाराज ( वृन्दावन धाम ) के पावन सानिध्य एवं मार्गदर्शन मॆ पथमेडा मॅ आयोजित किया जा रहा है! इस कार्यक्रम मॆ युवा साथियो के लिये विभिन्न कार्यक्रम होंगे! ज़िसमे प्रतिदिन परम पुज्य संत श्री गोपालमणिजी महाराज द्वारा “गौ महिमा” पर प्रवचन, परम पूज्य प. श्री विजयशंकरजी मेहता द्वारा विशेष प्रवचन (महाभारत, रामायण व ग़ौ भक्ति) के अतिरिक्त भगवान श्री कृष्ण की अद्भुत झांकियॉ के दर्शन के साथ महाराष्ट्र के वारकरी वैष्णव भक्तो द्वारा नृत्यमय भजन गायन व वादन और श्री गोविन्द जी भार्गव (कानपुर निवासी) अपनी मधुर वाणी मॅ भजन संध्या मॆ प्रस्तुतिया देंगे ! इन सबके अतिरिक्त समस्त युवाओ को परम पुज्य बाल व्यास श्री राधाकृष्णजी महाराज का पूर्ण सानिध्य प्राप्त होगा 

पथमेडा एक परिचय 
आनंदवन पथमेड़ा भारत देश की वह पावन व मनोरम भूमि है जिसे भगवान श्री कृष्ण् ने कुरूक्षेत्र से द्वारिका जाते समय श्रावण,भादो महिने में रूककर वृन्दावन से लायी हुई भूमण्डल की सर्वाधिक दुधारू, जुझारू, साहसी, शौर्यवान, सौम्यवान, ब्रह्मस्वरूपा गायों के चरने व विचरने के लिए चुना था। गत 12 शताब्दियों से कामधेनु, कपिला, सुरभि की संतान गोवंश पर होने वाले अत्याचारों को रोकने के लिये सन् 1993 मे राष्ट्रव्यापी रचनात्मक गोसेवा महाभियान का प्रारम्भ इसी स्थान से हुआ है।

जिसके अन्तर्गत सर्वप्रथम श्री गोपाल गोवर्धन गोशाला श्री गोधाम महातीर्थ की स्थापना कर पश्चिमी राजस्थान एवं उतर पश्चिमी गुजरात के विभिन्न क्षेत्रों में गोसेवा आश्रमों, गोसंरक्षण केन्द्रों तथा गोसेवा शिविरों की स्थापना करना प्रारम्भ किया। इस अभियान द्वारा गोपालक किसानों तथा धर्मात्मा सज्जनों के माध्यम से गोग्रास संग्रहित करके गोसेवा आश्रमों में आश्रित गोवंश के प्राण पोषण का निरन्तर प्रयास प्रारम्भ हुआ। उपरोक्त महाभियान के प्रथम चरण में क्रूर कसाइयों के चंगुल से तथा भयंकर अकाल की पीड़ा से पीड़ित लाखों गोवंश के प्राणों को संरक्षण मिल सका।

श्री गोधाम महातीर्थ की स्थापना से लेकर आजतक अत 17 वर्शो में श्री गोधाम पथमेड़ा द्वारा स्थापित एवं संचालित विभिन्न गोसेवाश्रमों में आश्रय पाने वाले गोवंश की संख्या क्रमशः इस प्रकार रही है-सन् 1993 में 8 गाय से शुभारम्भ सन् 1999 में 90000 गोवंश सन् 2000 में 90700 गोवंश सन् 2001 में 126000 गोवंश सन् 2003 में 284000 गोवंश सन् 2004 में 54000 गोवंश सन् 2005 में 97000 गोवंश सन् 2009 में 72000 हजार इस प्रकार लगातार चलते हुए वर्तमान सन् 2010 में 200000 से अधिक गोवंश सेवा में है जो की अकाल की विभीशिका के चलते बढ़ता ही जा रहा है। साथ ही प्रदेश के विभिन्न भागों में अस्थाई गोसेवा अकाल राहत शिविरों में लाखों गोवंश को आश्रय देने का कार्य प्रारम्भ हो गया है।

पथमेडा पहुंचने के लिये अहमबाद और जोधपुर से प्रत्येक घंटे रोड्वेज और प्राइवेट बसे सांचोर के लिये चलती है ( सांचोर से पथमेडा मात्र 10 किलो मीटर की दूरी पर स्थित है और साधन उपलब्ध है) 

अधिक जानकारी के लिये सम्पर्क करें 9414152163, 9414131008 02979-287102, 287122
या मेल करे mail@pathmedagodarshan.org, या www.pathmedagodarshan.org देखे 

सूचना द्वारा 
तरूण जोशी “नारद” (स्वतंत्र लेखक एव कवि )
9462274522, 9251941999 tdjoshi_narad@yahoo.co.in, model-hunter@in.com