Saturday, November 13, 2010

विद्यार्थियों और आम लोगों को गौ-विज्ञान के बारे में जानकारी होना आज की आवश्यकता

देश के शिक्षा पाठ्यक्रमों में ‘आदर्श भारतीय गौविज्ञान’ का कोर्स लागू हो- 
सुरेश कुमार सेन ;भीलवाड़ा

भारतवर्ष पर गुलामी के काल खण्ड में आक्रान्ताओं ने कई सांस्कृतिक मानबिन्दुओं पर सुनियोजित आक्रमण किये। जिसमें शिक्षा का क्षैत्र सर्वाधिक प्रभावित हुआ। एक समय तो ऐसा भी रहा था जब विदेशों से विद्यार्थी भारत आकर अध्ययन किया करते थे। श्रेष्ठ शिक्षा के कारण सैकड़ों आक्रमण होने के बाद भी हमारे देश को कोई मिटा नहीं पाया। परन्तु बड़ी विडम्बना है कि स्वतन्त्राता के 63 वर्षो के बाद भी हमारे शिक्षा पाठ्यक्रमों में भारतीय संस्कृति की आधार गौमाता के वैज्ञानिक, धर्मिक, सामाजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक महत्व के बारे में कोई जानकारी नहीं है। जहा तक मेरी जानकारी है, वर्तमान में सम्पूर्ण भारत वर्ष में कहीं पर भी किसी भी राज्य में कक्षा एक से लेकर बी.ए., बी.काम तक गौमाता के बारे में कोई पाठ या कोर्स नहीं है। हमने ग्रंथों में ऐसा पढ़ा है कि गाय के गोबर में लक्ष्मी का वास होता है परन्तु उसी लक्ष्मी के लिए हमें सहयोग मांगना/लेना पड़ता है। गौशालाए खोलनी पड़ती है। गौशालाओं के लिए दान, चंदा एकत्रा करना पड़ता है। 

स्वतंत्रता के पहले से आज तक गोहत्याबंदी के लिए कई आंदोलन चल रहै है। कई कत्लखानों के सामने आज भी अखण्ड धरने  जारी है। कई संत गोहत्याबदी में ही लगे हुए है। फिर  भी अपने देश में सरकारी अनुदान और सहयोग पर हजारों की तादाद में कत्लखाने धड़ल्ले  से  चल रहै है, जिनमें हजारों की संख्या में प्रतिदिन गोहत्याएं हो रही है। ऐसा क्यों ? इस पर विचार करने पर ध्यान में आता है कि हमें गाय के आर्थिक और वैज्ञानिक पक्ष की जानकारी से दूर कर दिया गया हैं। हमें इसके नकारात्मक गुण बता कर विदेशी नस्ल की गायों और भैंसो को अध्कि महत्वपूर्ण बताया गया है। जिस कारण हम देशी गाय से दूर होते चले गये। यदि हमें गाय के आर्थिक और वैज्ञानिक पक्ष की सही सही जानकारी होती तो सर्वगुण सम्पन्न गौमाता के बारे में ये प्रयास नहीं करने पड़ते। 

इतना होते हुए भी वर्तमान में देशी गाय के प्रति आम व्यक्तियों का चिंतन बदल रहा है। देशी गाय के दूध्, दही, घी, गोबर व गौमूत्र का प्रयोग कई प्रकार की असाध्य बिमारियों में लाभदायक सिद्ध हो चुका है। गाय का पालन करके मनुष्य सभी मनौकामनाओं की पूर्ति कर सकता है। गोसेवा से भी मनवान्छित पफल पाये जा सकते है। हमारे समाज में आज भी गाय के प्रति धर्मिक भावनाएं बहुत अच्छी है। ग्यारस/अमावस के दिन गायों का चारा देना, भोजन से पहले गाय के लिए गौग्रास निकालना, गौशालाओं के लिए आर्थिक सहयोग करना आदि अनेक उदाहरणों के चलते गाय के प्रति धार्मिक भावनाएं बनी हुई है। 

कुत्ते को लावारिस क्यों नहीं छोड़ा जाता - कोई भी व्यक्ति अकाल में अपनी भैंस को लावारिस नहीं छोड़ता है। भैड़, बकरी और अपने कुत्ते तक को लावारिस नहीं छोड़ते है परन्तु सर्वगुण सम्पन्न गौमाता को अकाल में सबसे पहले लावारिस छोड़ दिया जाता है। पाश्चात्य शिक्षा का यह सबसे बड़ा घृणित नमूना है। देशी गोवंश के बजाय जर्सी या हालीस्टन गाय रखना, देशी गाय के बजाय भैंस को पालना, कृषि कार्य में बैलों के बजाय ट्रेक्टरों का उपयोग लेना, खेती में गोबर के बजाय राशायनिक खादों का प्रयोग करना, स्वदेशी के बजाय विदेशी वस्तुओं का प्रयोग करना आदि हम अपने दैनिक जीवन में हजारों उदाहरण अपने सामने घटित होते देख सकते है। जब हम इस विषय पर विचार करते है तो हमें लगता है कि हम गौमाता से दूर होते चले गये है। हमें इस प्रकार मजबूर कर दिया गया कि हम स्वतः देशी गाय का चिंतन छोड़ने लग गये। 

कटु सत्य - एक बात तो सत्य है कि जब तक हम गौमाता के बारे में पढ़ेगें या जानेगें नहीं तब तक हम गोमाता को पालने या रक्षा करने के बारे में भी नहीं सोचेगें। मैं जब तक देशी गाय के महत्व के बारे कुछ भी नहीं जानता था तब तक देशी गाय के बजाय जर्सी या हालीस्टन गाय रखने के लिए ही खूब भाषण दिया करता था। परन्तु जबसे मैंने गौमाता के महत्व को समझा उसके बाद कभी भी गलती से भी विदेशी नस्ल को अपनाने के लिए नहीं कहा। गौपालन बहुत सरल है। केवल मानसिकता गौपालन की होनी चाहिए। आज शहर में रहते हुए भी मैनें गाय पाल रखी है। मेरा पूरा परिवार गोभक्त हो गया है। गाय हमारे परिवार की एक सदस्य है। चारे पानी के अलावा गाय को भी वे सब चीजें दी जाती है जो हम काम में लेते हैं। जैसे चाय के समय चाय, खाने के समय रोटी, सुबह सुबह गुड़ रोटी, पानी में प्रतिदिन नमक का प्रयोग आदि । ये सब गाय का महत्व जानने के बाद ही संभव हो सका। 

गौविज्ञान परीक्षा का अभिनव प्रयोग- परिपक्व लोगों को गोमाता के बारे में समझाना थोड़ा कठिन है। क्योंकि बड़े लोग उसी बात को समझेगें जिसे वे समझना चाहते है या यू कहें - उन्हैं अपना स्वार्थ जिसमें लगता है उस बात को ही वे समझना चाहते है। यदि गौमाता की बात बच्चो को समझाई जावे तो निश्चित ही आज नही तो कल लाभ अवश्य होगा। सो वर्ष 2008 में मैंने एक विशेष प्रयोग किया। गौमाता की रक्षार्थ एक सकारात्मक पहल प्रांरभ की और स्कूली छात्रों को गौमाता के कुछ अच्छे गुणों का संकलन कर विद्यार्थियों को उपलब्ध् कराये। आकर्षक नकद पुरस्कारों के कारण मैंने पाया कि विद्यार्थी इस परीक्षा में अत्यध्कि उत्साह से भाग ले रहै थे। शिक्षक/अध्यापक तो मानों इस परीक्षा का इंतजार ही कर रहै थै। हमारा प्रयास यह है कि बच्चों को यदि सर्वगुण सम्पन्न देशी गाय के बारे में श्रेष्ठ जानकारी मिलेगी तो भविष्य में देशी गौवंश को बचाने में सफलता  जरूर मिलेगी। अपने जीवन में छात्र जहा भी होगा वह गोमाता की चिंता जरूर करेगा। इसलिए स्कूलों के माध्यम से छात्रों को देशी गौवंश एंव गौउत्पादों की आर्थिक और वैज्ञानिक दृष्टि से उपयोगिता तथा गौमाता के धर्मिक, सांस्कृतिक, ऐतिहासिक महत्व की जानकारी कराने हेतु ये परीक्षाएं आयोजित की जा रही है। 

गौविज्ञान परीक्षाएं क्यों ? वर्तमान शिक्षा पाठ्यक्रमों में भी विद्यार्थियों को देशी गाय के बारे में कहीं पर भी ठीक प्रकार से जानकारी नहीं दी जा रही है। गाय का दूध  पीला क्यों होता है, गाय का घी पीला क्यों होता है, दस ग्राम गाय के घी से हवन करने पर कितनी आक्सीजन बनती है, इसका वैज्ञानिक कारण क्या है ? आदि सामान्य बातें भी बच्चे, आप और हम नहीं जानते है। 

परीक्षा से परिणाम-कोरे कागज की भाति स्वच्छ बाल मन वाले बच्चों को यदि देशी गोवंश के बारे में ठीक प्रकार की नई नई वैज्ञानिक जानकारी मिलेगी तो भविष्य में बच्चे बड़े होकर गौमाता की सुरक्षा के बारे में अवश्य विचार करेगें। हम इस परीक्षा के माध्यम से छात्रों और उनके परिवार जनों को गौमाता के बारे में कई प्रकार की नई नई जानकारी कराने में सफल  होगें। शिक्षा पाठ्यक्रमों में भी ‘आदर्श भारतीय गौविज्ञान’ का विषय सामिल कराने के प्रयास होगे। 

सफल  प्रयोग - राजस्थान में यह परीक्षा पहली बार भीलवाड़ा में दिनांक 14 नवम्बर 2008 को आयोजित हुई जिसमे लगभग 12,500 विद्यार्थियों ने भाग लिया। दूसरे गत वर्ष दिनांक 2 अक्टूबर 2009 को राजस्थान के 20 जिलों के 64,500 विद्यार्थियों ने भाग लिया। इस वर्ष 2010 में इस परीक्षा को अखिल भारतीय स्तर पर आयोजित किया जा रहा है। इस परीक्षा की पुस्तक के माध्यम से कई शिक्षकों को भी गौमाता के बारे में पहली बार नई नई जानकारिया मिली। परीक्षा के कारण कई लोगों ने गाय को बेचने का मन बदल कर घर में गाय को पालने का मन बना लिया। 

परीक्षा कैसे - इस वर्ष भारतीय गौविज्ञान परीक्षा दि. 22.10.2010 महर्षि वाल्मिकी जयन्ति के दिन अखिल भारतीय स्तर पर आयोजित होगी। इस परीक्षा की पुस्तक को कक्षा 6 से 12 वी. तक के विद्यार्थी सरलता से पढ़ सकते है। इस पुस्तक को पढ़ने के बाद विधार्थियों से एक परीक्षा ली जाती है। इन पुस्तकों को स्कूलों में सशुल्क वितरण किया जाता है। स्कूलों के प्रधानाचार्य  और शिक्षक इस कार्य में बहुत रूचि लेते है। पुस्तकें वितरण के कुछ समय बाद प्रश्नपत्र दिये जाएगें और बाद में निधरित तिथि को यह परीक्षा होगी। परीक्षा सम्पन्न होने के बाद स्कूलों से प्रश्नपत्रों को वापस एकत्र कर मुख्यालय भिजवा दिये जाते है। प्राप्त प्रश्नपत्रों के परिणाम अनुसार छात्रों को स्कूल प्रांत स्तर पर/ जिला स्तर पर/ तहसील स्तर पर प्रथम/द्वितीय/तृतीय स्थान प्राप्त करने वाले विद्यार्थियों और परीक्षा में सहयोग करने वाले शिक्षकों को अभिनंदनपत्र प्रदान कर सम्मानित किया जाता है। 

परीक्षा शुल्क- इस परीक्षा का शुल्क 20 रू. ;सहयोग राशि रखा है। जिसमें परीक्षा आवेदन फार्म, परीक्षा पुस्तक, प्रश्नपत्र, प्रमाणपत्र और नकद पुरस्कार व अन्य कई प्रकार के पुरस्कार प्रदान किये जाते है। इस परीक्षा आयोजन में किसी भी प्रकार के राजनैतिक/ सामाजिक/ आर्थिक लाभ की लेश मात्र भी कामना नहीं है। सभी कार्य लागत मूल्य पर ही किये जाते है। 

पुरस्कारों की जानकारी- प्रांत व जिला स्तर पर सर्वाधिक अंक प्राप्त करने वाले विद्यार्थियों को कई नकद व अन्य पुरस्कार प्रदान किये जाते है। विद्यालय स्तर पर सर्वाधिक अंक प्राप्त करने वाले प्रथम, द्वितीय, तृतीय परीक्षार्थीयों को पुरस्कार और प्रमाणपत्र तथा परीक्षा में भाग लेने वाले सभी परीक्षार्थियों को आकर्षक प्रमाण पत्र दिये जाते है। परीक्षा में सहयोग करने वाले संस्था प्रधानो  एंव परीक्षा प्रभारियों को आकर्षक प्रोत्साहन एंव अभिनंदन पत्र प्रदान किये जाते है। 

परीक्षा कब तक - देश के शिक्षा पाठ्यक्रमों में ‘आदर्श भारतीय गौविज्ञान’ का कोर्स लागू होने तक भारतीय गौविज्ञान परीक्षाएं आयोजित कराई जाएगी। 

विनम्र अनुरोध - हर गोभक्त कार्यकर्ता को प्रयास करके इस गौविज्ञान परीक्षा रूपी महायज्ञ में अपनी आहूति अवश्य देनी चाहिए। अपने आस पास की 100-150 स्कूलों में इस परीक्षा को आयोजित कराने का प्रयास करना चाहिए। जो व्यक्ति निजी विद्यालय संचालित करते है या शिक्षक है वे इस परीक्षा को प्रयासपूर्वक अवश्य आयोजित करावें। योजनापूर्वक कार्य करने पर हजारों छात्रों को सरलता से परीक्षा दिलाई जा सकती है। 

परीक्षा सम्बन्धी अधिक जानकारी के लिए 094140.13214 पर सम्पर्क किया जा सकता है। 
प्रेषक- सुरेश कुमार सेन 
राष्ट्रीय परीक्षा संयोजक 
बी-324, सुभाषनगर, भीलवाड़ा ;राज.
311001, मो.-94140.13214 

2 comments:

Ras vihari sharma said...

ap ke is lekh ki jitni prasansha ke jay utani he kam he,gaumata ke bare me apne jo mahtvpurn jankari de he,yh ham bhart wasiyon ke liye tatha vidyarthiyon ke liye aj ke avasyakata he .....Ras vihari sharma

Ajay said...

आप से अनुरोध की गाय के बारे और धर्म हिंदू ज्ञान दे=
I have to request to all to please give to all south Indian Hindu’s as Like Karla , Andhra Pradesh about Cow and his important because I was worked in golf Country and there I saw they eat Cow ( BEEF) and They don't know about Impotent’s of Cow and Over Religions Hindu knowledge
Thanks