Saturday, May 15, 2010

हिन्दी लोकोक्तियों में गाय

भाषा और संस्कृति समाज का प्रतिबिम्ब है। इसके अध्ययन से सामाजिक संरचना का आभास लगाया जा सकता है। दरअसल, संस्कृति के विकास को ही भाषा दर्शाती है तथा इसके परिवर्तन को सही दिशा संस्कृति से मिलती है।

भिन्न-भिन्न प्रतीकों के माध्यम से संस्कृति के सभी तथ्यों को भाषा अपनी विशिष्ट शैली में अभिव्यक्त करती है। मुहावरे तथा लोकोक्तियां भाषा के वे स्वरूप हैं जो स्थानीय हावो-हवा से बनती है। भारतीय समाज में गाय को लेकर अत्यधिक आदर भाव है। उसके ऊपर अनेक लोकोक्तियां प्रचलित हैं। इससे गाय के प्रति भारतीय समाज में व्याप्त व्यापक दृष्टिकोण, एवं जीवन में गाय को सर्वाधिक महत्व देते हुए दिखाया गया है।

भारतीय भाषाओं में प्रचलित कई लोकोक्तियां गाय से जुड़ी है। इससे भारतीय समाज के गाय सम्बन्धी जीवन-दर्शन को समझा जा सकता है। हिन्दी भाषा में प्रचलित लोकोक्तियां निम्नलिखित है।

1. गाय कहां घोंचा घोंघियाय कहां- गाय कहीं और खड़ी है घोंचे (उसके दूहने के बर्तन) से आवाज किसी और जगह से आ रही है। कारण और परिणाम में असंगति होने पर ऐसा कहते हैं।

2. गाय का दूध् सो माय का दूध- गाय का दूध माता के दूध के समान होता है, अर्थात् गाय का दूध काफी लाभप्रद होता है।

3. गाय का धड़ जैसा आगे वैसा पीछे- पवित्रता के लिहाज से गाय का अगला तथा पिछला दोनों धड़ समान माना जाता है। कहावत का आशय यह है कि समदर्शी व्यक्ति को सभी श्रद्धा से देखते हैं।

4. गाय का बच्चा मर गया तो खलड़ा देख पेन्हाई- वियोग हो जाने पर बिछुडने वाले के चित्र आदि रूप देख कर भी तसल्ली होती है।

5. गाय की दो लात भली- सज्जन व्यक्तियों की दो चार बातें भी सहन करनी पड़ती हैं।

6. गाय की भैंस क्या लगे- अर्थात् कोई संबंध नहीं है। जब किसी का किसी से कोई संबंध न हो फिर भी वह उससे संबंध जोड़ना चाहे तो यह लोकोक्ति कहते हैं।

7. गाय के कीड़े निबटें, कौवा का पेट पले- कौआ आदि पक्षी, पशुओं के शरीर के कीड़े मकोड़े खाते रहते हैं। इससे पशुओं की कुछ हानि नहीं होती किंतु पक्षियों को भोजन मिल जाता है। यदि कोई छोटा आदमी किसी बड़े आदमी के सहारे जीवनयापन करे तो उसके प्रति ऐसा कहते हैं।

8. गाय के अपने सींग भारी नहीं होते- अपने परिवार के लोग किसी को बोझ नहीं मालूम पड़ते।

9. गाय गई साथ रस्सी भी ले गई- गाय तो हाथ से गई ही साथ में रस्सी उसके गले में बंधी थी वह भी ले गई। (क) जब कोई अपनी हानि के साथ-साथ दूसरों की भी हानि करता है, तब ऐसा कहते हैं। (ख) जब एक हानि के साथ ही दूसरी हानि भी हो जाए तो भी ऐसा कहा जाता है।

10. गाय चरावें रावत, दूध पिए बिलैया- गाय तो रावत चराते हैं और दूध् बिल्ली पीती है, अर्थात जब श्रम कोई और करे तथा उसका लाभ कोई और उठावे तब ऐसा कहते हैं।

11. गाय तरावे भैंस डुबावे-

(क) गाय की पूंछ पकड़ कर नदी या नाला पार करना पड़े वह पार ले जाती है किंतु भैंस पानी में प्रसन्न रहती है इस कारण वह बीच में ही रह जाती है और पार करने वाला डूब जाता है

(ख) भले लोगो की संगति मनुष्य का कल्याण हो जाता है और बुरे लोगों की संगति से हानि सहन करनी पडती है।

12. गाय न बाछी नींद आवे आछी- जिनके पास गाय, बछड़े या बछिया आदि नहीं होती उन्हें खूब नींद आती है, अर्थात निर्धन व्यक्ति निश्चित होकर सोता है।

13. गाय न्याणे की, बहू ठिकाने की- गाय वह अच्छी होती है जिसे न्याणो पर दूध् देने की आदत हो और बहू वह अच्छी होती है जो अच्छे खानदान की हो। (न्याणा-एक रस्सी जो दूध निकालते समय गाय के पिछले पैरों में बांधी जाती है)।

14. बांगर क मरद बांगर क बरद- बांगर (ऐसी भूमि जो नदी के कछार से बहुत दूर हो) के बैलो और किसानों को साल में एक दिन भी आराम नहीं मिलता। उन्हें सदा ही काम करना पड़ता है।

15. बैल तरकपस टूटी नाव, ये काहू दिन दे हैं दांव- टूटी हुई नाव तथा चौंकने वाले बैल का कभी विश्वास नहीं करना चाहिए, क्योंकि ये किसी भी समय धोखा दे सकते हैं।

16. बैन मुसहरा जो कोई ले राज भंग पल में कर दे, त्रिया बाल सब कुछ-कुछ गया, भीख मांगी के घर-घर खाये- जो लटकती डील वाले बैल को मोल लेता है उसका राज क्षण-भर में नष्ट हो जाता है। स्त्री, बाल-बच्चे छूट जाते हैं तथा घर भीख मांग कर खाने लगता है, अर्थात उपरोक्त ढंग के बैल अशुभकारी होते हैं।

17. बैल लीजे कजरा, दाम दीजै अगरा- काली आंखों वाले बैल को पेशगी दाम देकर खरीद लेना चाहिए। अर्थात इस तरह के बैल बहुत अच्छे होते हैं।

उपरोक्त लोकोक्तियों के द्वारा यह स्पष्ट हो जाता है कि भारतीय समाज के संस्कारों एवं उनके अनुभवों को भाषा के द्वारा गाय के माध्यम ये जनमानस को बांटने की कोशिश कि गयी है। गाय के लिए सम्मान एवं उसकी सुरक्षा भारतीय भाषाओं के भाषाई तत्वों द्वारा पूरी तरह स्पष्ट होती है।

-रक्षाराम पाण्डेय

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