Friday, May 14, 2010

हमारा देश फिर से सोने की चिड़िया बनकर चहचहा सके .....


"मैं गाय की पूजा करता हूँ | यदि समस्त संसार इसकी पूजा का विरोध करे तो भी मैं गाय को पुजूंगा-गाय जन्म देने वाली माँ से भी बड़ी है | हमारा मानना है की वह लाखों व्यक्तियों की माँ है "
- महात्मा गाँधी 

गौ मे ३३ करोड़ देवी-देवताओं का वास होता है , अतः गौ हमारे लिए पूजनीय है परन्तु क्या इन धार्मिक मान्यता  के आधार पर भी आज ही़नदुस्तान  में गौ को उसका समुचित स्थान मिल पाया है ? नहीं | 
अतः समय है आज के  (तथाकथित ) वैज्ञानिक एवं व्यापारिक युग में गौ  की उपयोगिता के उस पहलु पर भी विचार किया जाये तब शायद उसके ये मानस-पुत्र स्वर्थावास ही सही परन्तु उसकी हत्या करने के पाप से बच तो जायेंगे |
संपूर्ण जीवधारियो में गौ का एक अलग और महत्वपूर्ण स्थान है | यह स्थान ज्ञान और विज्ञान सम्मत है , ज्ञान और विज्ञान के पश्चात आध्यात्म तो उपस्थित हो ही जाता है | इस प्रकार ज्ञान , विज्ञान और आध्यात्म - इन तीन की बराबर रेखाओ के सम्मिलन से जो त्रिभुज बनता है ,उसे गाय कहते है | विद्वानों ने गाय को साक्षात् पृथ्वी-स्वरूपा बतलाया है| इस जगत के भार को जो समेटे हुए है और जगत के संपूर्ण गुणों की जो खान है उसका नाम गाय है |
हमारे पूर्वजो ने इस तथ्य को जान  लिया था और गौ सेवा को अपना धर्म बना लिया था जिसके फलस्वरुप हमारा देश "सोने की चिड़िया "बना हुआ था .....और कहा था
"सर्वे देवाः स्थिता: देहे , सर्वदेवमयी हि गौ: |"
परन्तु हम इसे भूल गए | यह भारत के अध:पतन की पराकास्ठा है की स्वतंत्रता मिलने के पश्चात भी यह नित्य-वन्दनीय गौ मांस का व्यापार फल=फूल रहा है | गौमांस का आतंरिक उपभोग बढ़ रहा है , बीफ खाना आज आधुनिकता की पहचान बन गया है | कत्लखानो का आधुनिकरण किया जा रहा है , रोज नये कत्लखाने खुल रहे है | ऐसा प्रतीत होता है स्वयं कलियुग ने गो वंश के विनाश का बीड़ा उठा लिया हो | अंग्रेजो ने "गोचरों " को हड़पने के लिए जो घिनौना खेल खेला था हम आज भी उसी मे फंसे हुए है |
आधुनिक अर्थशास्त्र ने भी हिन्दुस्थान के गौवंश के विनाश मे परोक्ष रूपा से सहयोग दिया | डॉ. राव , मुखर्जी , नानालती और अन्जारिया के विचारो को फैलाया गया जिन्होंने कहा था-" भारत पर गौवंश एक बोझ है , 70 % भारतीय गाय दूध नही देती , कृषि के लिए बैल अनुपयुक्त है " जो की सरासर एक सफ़ेद झूठ है" जबकि भारतीय अर्थशास्त्रियों मसलन डॉ. राईट के अनुसार 1940 के दशक के रूपये के अनुसार सिर्फ गाय और बैलो से प्राप्त दूध, दूध से बने पदार्थ, हड्डियाँ एवं चमड़ा , बैल-श्रम तथा खाद के माध्यम से एक हजार दस (1010 ) करोड़ के मूल्य की प्राप्ति होती है |एक सोची समझी साजिश ही प्रतीत होती है जो भारतीय गौवंश का विनाश के लिए तैयार की गयी है....मसलन यह के कृषकों को यह कहना की यह की गाये सर्फ 600 पौंड दूध ही देती है अतः विदेशी एवं संकर गाय जो 5000पौंड दूध देती है के बिना उनका जीवन नही चल पायेगा जबकि सेना एवं अन्य जगहों पर से आये औसत कुछ और ही बयां करता है.....भारतीय गायों के प्रजातियों के अनुसार यह 6000 -10000 पौंड तक का पाया गया |
अतः एक बात तो स्पष्ट है.."आधुनिक एवं अंग्रेज विद्वानों ने बड़े ही सुनियोजित तरीके से भारतीय गौवंश को कत्लखाने की तरफ धकेलने का प्रयास किया " आज स्थिति यह है की अत्यंत उपयोगी एवं युवा गौवंश को कत्लखानो मे भेजा जा रहा है | आचार्य विनोबा भावे ने तो इस गौवंश के प्राण रक्षा के लिए अपने ही प्राण उत्सर्ग कर दिए |परन्तु विडम्बना है की उनके बलिदान की किसी ने भी सुध नही ली| 

गौ वंश की वैज्ञानिक , व्यापारिक एवं पर्यावरण के दृष्टिकोण से उपयोगिता 

गाय के दूध की उपयोगिता से भला कौन परिचित नही है , इसकी उपोगिता को देखते हुए इसे सर्वोत्तम आहार कहा गया और इसकी तुलना अमृत से की गयी | गाय के दूध मे इसे अनेक विशेषता है जो किसी और दूध मे नही ...यह स्वर्ण से प्रचुर होता है...जिसके कारण इसके दूध का रंग पीला होता है , केवल गाय के दूध मे ही विटामिन "ए" होता है और अपनी अन्य खूबियों की वजह से यह शरीर मे उत्पन्न विष को समाप्त कर सकता है , एवं कर्क रोग (कैंसर ) की कोशिकाओ को भी समाप्त करता है 
गाय के घी से हवन मे आहुति देने से वातावरण के कीटाणु समाप्त हो जाते है 
गाय के गोबर को जलाने से एक स्थान विशेष का तापमान कभी एक सीमा से उपर नही जा पता, भोजन के पोषक तत्त्व समाप्त नही हो पाते और धुंए से हवा के विषाणु समाप्त हो जाते है |गाय के गोबर से बने खाद मे nitrogen 0 .5-1 .5 % , phosphorous 0 .5 -0 .9 % और potassium 1 .2 -1 .4 % होता है जो रासायनिक खाद के बराबर है ....और जरा भी जहरीला प्रभाव नही डालता फसलों पर | यह प्रभावशाली प्रदूषण नियंत्रक है , गाय के गोबर से सौर-विकिरण का प्रभाव भी समाप्त किया जा सकता है |"गोबर पिरामिड " से बड़ी मात्रा मे सौर उर्जा का अवशोषण संभव है | 
तालाबों मे गाय का गोबर डालने से पानी का अम्लीय प्रभाव समाप्त हो जाता है , गोबर के छिडकाव से कूड़े की बदबू समाप्त हो जाती है | लाखों वर्षों तक गोबर के खाद के प्रयोग से भारती की उर्वरा समाप्त नही हुई किन्तु अभी 60 -७० वर्षो मे रासायनिक खादों के प्रयोग से लाखों hectare भूमि बंजर हो गयी 
आज भी हिरोशिमा और नागाशाकी के निवासी परमाणु विकिरणों से सुरक्षा के लिए गोरस से भिगो कर रात्रि मे कम्बल पहनते है 
गोमूत्र में नीम की पत्तियों का रस डाल कर एक बेहद असरदार और हानिरहित जैव-कीटनाशक का निर्माण होता है जो पौधों की वृद्धि , कीटनाशक , फफूंद नियंत्रक एवं रोग नियंत्रक का कार्य करता है | यह पर्यावरण की पूरी श्रृंखला शुद्ध करता है 
गोमूत्र का अर्क फ्लू , गठिया , रासायनिक कुप्रभाव , लेप्रोसी , hapatitis , स्तन कैंसर , गैस , ulcer , ह्रदय रोग , अस्थमा के रोकथाम मे सर्वथा उपयोगी है यह बालो के लिए conditioner का कार्य भी करता है 
प्रति वर्ष पशुधन से 70 लाख टन पेट्रोलियम की बचत होती है | 60 अरब रुपये का दूध प्राप्त होता है , 30 अरब रुपये की जैविक खाद प्राप्त होती है , 20 करोड़ रुपये की रसोई गैस प्राप्त होती है .....यह आंकड़े खुद बा खुद यह बयां करते है की गो माता राष्ट्रीय आय मे वृद्धि का ईश्वर प्रद्दत श्रोत है
आठो ऐश्वर्य लेकर देवी लक्ष्मी गाय के शरीर मे निवास करती है |- इस कथन का गूढ़ार्थ राष्ट्र लक्ष्मी की और संकेत करता है जो हम उपर देख चुके है तो क्या अब ये हमारा दायित्व नही बनता है की हम पुनः गौ माता को उनका स्थान प्रदान करे ताकि हमारा देश फिर से सोने की चिड़िया बनकर चहचहा सके .............

"कृषि और ग्रामीण अर्थव्यवस्था का दारोमदार गोवंश पर निर्भर है | जो लोग यंत्रीकृत फार्मों के और तथाकथित वैज्ञानिक तकनीकियो के सपने देखते है , वे अवास्तविक संसार मे रहते है "
-लोकनायक जयप्रकाश नारायण 

No comments: