Monday, May 31, 2010

गोरक्षार्थ धर्मयुद्ध सुत्रपात


धर्मप्राण भारत के हरदे सम्राट ब्रह्रालीन अन्न्त श्री स्वामी श्री करपात्री जी  महाराज द्वारा संवंत २00१ में संस्थापित अक्षिल भारतवासीय धर्मसंघ ने अपने जन्मकाल से ही मॉ भारतीय के प्रतीक गो रक्षा पालन पूजा एंव संर्वधन को अपने प्रमुखा उद्देश्यो में स्थान दिया था। सन २१४६ में देश में कांग्रेस की अंतरिम  सरकार बनी । भारतीय जनता ने अपनी सरकार से गोहत्या के कलंक  को देश के मस्तक से मिटाने की मांग की। किंतु  सत्ताधारी  नेताओं ने पूर्व घोषणाओ की उपेक्षा कर धर्मप्राण भारत की इस मांग  को ठुकरा दिया।

सरकार की इस उपेक्षावर्ती  से देश के गोभक्त नेता एवं जागरूक जनता चिन्तित हो उठी। उन्हे इससे गहरा  आघात लगा। सन` १९४६ के दिसम्बर मास में देश के प्रमुख नगर बंबई श्रीलक्ष्मीचण्डी-महायज॔ के साथ ही अखिल भारतीय धर्मसंघ   के तत्वाधान में आयोजित विराट गोरक्षा सम्मेलन मे स्वामी करपात्री जी  ने देश के धार्मिक सामाजिक एंव राजनैतिक नेताओं एंव धर्मप्राण जनता का आह्रान किया। देश के सवोच्च धर्मपीठो के जगदगुरू शंकराचार्य संत महात्मा विद्वान राजा-महाराजा एंव सद`गहस्थो ने देश के समक्ष उपस्थित इस समस्या पर गम्भीर विचार मंथन किया। और सम्मेलन  में सर्वसम्मत  घोषणा की गयी कि गयी " सरकार से यह सम्मेलन अनुरोध करता है कि देश के सर्वविध कल्याण को ध्यान में रखते हुए भारतीय धर्म और संस्कृति के प्रतीक गोवंश की हत्या कानून द्वारा प्रतिबन्ध लगा दे। कदाचित सरकार ने अक्षया त्रतीय   २३ तदनुसार २८ अप्रैल  १९९८ तक सम्मेलन के अनुरोध पर ध्यान नही दिया तो अखिल भारतीय धर्म संघ देश की राजधानी दिल्ली मे सम्पुर्ण गो हत्याबंदी के लिए अंहिसात्मक सत्याग्रह प्रारम्भ कर देगा। उक्त घोषणा के पश्चात्  शिष्ट मण्डलो गो रक्षा सम्मेलनो जन सभाओ हस्ताक्षर आन्दोलन एवं स्मरण पत्रों  द्वारा सरकार के कर्ण धारो को गोहत्या बंदी की मॉग का औचित्य एवं अनिर्वायता समझाने की भरसक चेष्टा  की गयी; किंतु सरकार के कानपर जू तक नही रेंगी।

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